भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्
(पर्यावरण, वन मंत्रालय एवं जलवायु परिवर्तन ,भारत सरकार)
 

निदेशक का संदेश


  

भावाअशिप - शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आफरी), जोधपुर (राजस्थान) की वेबसाइट पर आपका स्वागत करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। भावाअशिप - शुष्क वन अनुसंधान संस्थान की स्थापना जोधपुर में राजस्थान, गुजरात तथा दादरा और नगर हवेली व दमण और दीव क्षेत्रों की वानिकी अनुसंधान आवश्यकताओं को पूरा करने की दृष्टि से हुई है। इस संस्थान का अधिदेश (Mandate) के विशेषकर शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देते हुए जैव विविधता का संरक्षण तथा जैव उत्पादकता वृद्धि हेतु वानिकी अनुसंधान करना है। संस्थान मुख्य पृष्ठ पर उल्लिखित क्षेप क्षेत्रों (Thrust areas) पर कार्य कर रहा है जिसके अंतर्गत वन पारिस्थितिकी, वन आनुवंशिकी, ऊतक संवर्धन, अणु जैविकी, वनवर्धन, वन कीट विज्ञान तथा रोगविज्ञान, अकाष्ठ वनोपज एवं वन विस्तार एवं कृषि वानिकी पर अनुसंधान कार्य सम्मिलित हैं। संस्थान क्षेप/दबाव क्षेत्रों (Thrust areas) की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए परियोजनाएँ चला रहा है। 

संस्थान में राज्य के कई ज्वलंत पहलुओं जैसे खेजडी मृत्यता, लुप्त प्राय: प्रजातियों जैसे गुग्गल (Commiphora wightii)  का बहुसंख्यात्मक उत्पादन, रोहिडा (Tecomella undulata) में स्टेम कैंकर के विरुद्ध प्रतिरोधकता उत्पन्न करना, अपक्षीण भूमि पर वृक्षारोपण, अपवाही संरचनाओं द्वारा जलभरण क्षेत्रों का सुधार तथा औषधीय पादपों से जुड़ी परियोजनाएं भी चल रही हैं। राजस्थान व गुजरात की प्रमुख प्रजातियों जैसे नीम (Azadirachta indica), देशी बबूल (Acacia nilotica), खेजडी (Prosopis cineraria), रोहिड़ा (Tecomella undulata), अरडू (Ailanthus excelsa), शीशम (Dalbergia sissoo), सफेदा (Eucalyptus camaldulensis) आदि पर संस्थान में अनुसंधान कार्य हो रहा है तथा ज्वलंत विषय जलवायु परिवर्तन, कार्बन उत्सर्जन, अकाष्ठ वनोपज का मूल्य वर्धन, अणु आनुवंशिकी, जैव सूचनिकी व जैव प्रौद्योगिकी जैसे विषयों पर अनुसंधान कार्य प्रगति पर है।

निदेशक ने नवाचार के तहत संस्थान परिसर में फेंके या जलाए जाने वाली नीम पत्तियों से ऑर्गेनिक खाद (सह ट्राइकोडर्मा मूल्य संवर्धित) बनाकर ब्रांडिंग की है, जिसकी मांग आपूर्ती से कई गुणा अधिक है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वी.आर.सी. (वैराइटी रिलीज कमेटी) ने संस्थान द्वारा प्रस्तावित शीशम के उच्च काष्ठ उत्पादन वाले तीन कलोन्स (आफरी DS-1, DS-2 एवं DS-3) जारी किए जो गर्म क्षेत्र के पणधारियों (स्टेकहोल्डर्स) हेतु कृषि वानिकी आदि के लिए वरदान साबित होंगे। 

संस्थान में हो रहे अनुसंधान का राजस्थान तथा गुजरात में स्थापित किए गए वन विज्ञान केन्द्रों की मदद से, किसान प्रशिक्षण आयोजित कर, विभिन्न मेलों में अनुसंधान सामग्री का प्रदर्शन कर, संगोष्ठी एवं परिचर्चा आयोजित कर, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में अनुसंधान प्रकाशित कर तथा वेबपोर्टल के जरिये पणधारियों को लाभान्वित किया जा रहा है। युवा पीढ़ी को पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति संवेदनशील करने हेतु हाल ही में भा.वा.अ.शि.प. द्वारा केंद्रीय विद्यालय संगठन तथा नवोदय विद्यालय समिति से आपसी करार कर ‘प्रकृति’ कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया है। आपसी हितों से जुड़े ज्ञात क्षेत्रों के अंतर्गत पूरक शोध कार्यक्रमों के जरिये सहयोग बढ़ाने हेतु भा.कृ.अ.प. के साथ भा.वा.अ.शि.प. के समझौता ज्ञापन अनुसार आफरी कार्य कर रहा है। संस्थान में वन अनुसंधान संस्थान (FRI) सम विश्वविद्यालय का प्रकोष्ठ भी कार्यरत है जो कि वानिकी में पी.एच.डी. हेतु  शोधार्थियों को पंजीकृत करता है।

हमारे मंत्रालय द्वारा बनाई जा रही भारत की 13 मुख्य नदियों की कायाकल्प हेतु विस्तृत परियोजना रपट (डीपीआर) में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा लूणी नदी का कार्य आफरी को सौंपा था, जो वर्ष 2019-20 में ही पूर्ण कर दिया था। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019-20 से कैम्पा (CAMPA) निधि से संस्थान को अखिल भारतीय स्तर पर जुड़ी शोध परियोजनाएं 5 वर्षों के लिए स्वीकृत की जा चुकी हैं जिनसे संस्थान के सभी वैज्ञानिक व तकनीकी कर्मचारीगण जुड़े हुए हैं।

क्षेत्राधिकार की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संस्थान सर्वोत्तम ढंग से अनुसंधान हेतु निरंतर प्रयासरत है। यह वेबसाइट संस्थान के अनुसंधान कार्यकलाप की हर संभव सूचना प्रयोक्ताओं को मुहैया करने हेतु एक प्रयासभर है। मैं आशा करता हूँ कि वेबसाइट में दी गई सूचनाएं प्रेक्षकों के लिए मददगार साबित होंगी। वेबसाइट के सुधार हेतु दिये जाने वाले सुझावों का स्वागत है जिन्हें मुझे अथवा वेबसंचालक को ई-मेल पर भेजा जा सकता है।

(माना राम बालोच, भा.व.से.)
निदेशक
 

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माना राम बालोच, भा.व.से.

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