वन पारिस्थितिकी एवं जलवायु परिवर्तन प्रभाग
प्रस्तावना
संपूर्ण विश्व में मरुप्रसार एवं इसके परिणामस्वरूप भूमि का अपक्षीणन (Degradation) एक भयावह समस्या है। पश्चिमोत्तर भारतीय क्षेत्र में यह समस्या मौसम की जटिलताओं कम एवं अनियमित वर्षा (100-400मिमी) तथा उच्च वाष्पोत्सर्जन की दर के कारण और भी विकट है। यहां की मृदा अपरिपक्व,संरचनाहीन तथा स्थूल संरचनायुक्त एवं कमलधारणो तत्वों वाली है।
जल एवं पोषक तत्वों की कमी के कारण क्षेत्र में वनस्पति आवरण एवं उत्पादकता में कमी स्वत: दृष्टिगत होती है। अधिक जनसंख्या दबाव के कारण उपरोक्त समस्या और अधिक भयावह हो जाती है। इससे फसल चक्र तथा भू-उपयोग तरीकों मे भी बदलाव आया है।
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Soil Profile Study
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उपलब्ध वनस्पति का अतिदोहन तथा लवणीय भूजल द्वारा सिंचाई के परिणामस्वरुप भूमि का अपक्षीणन हुआ है। इसके स्पष्ट प्रमाण मृदा अपरदन, अपवहन एवं लवणीकरण तथा वृक्ष एवं मृदा विहीन पहाड़ियों के रुप में परिलक्षित हुए हैं। वन पारिस्थितिकी प्रभाग का प्रमुख उद्देश्य मरु प्रसार रोक एवं अवक्रमित पहाड़ियों के पुनर्वास से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान करना तथा वर्तमान जलवायु परिवर्तन एवं जैवविविधता को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाना है।
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Hetropogon + A. leucophloea ghas jod,Sindarli, Pali
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उद्देश्य
इस प्रभाग द्वारा मरुप्रसार की समस्या, जलवायु परिवर्तन एवं जैव विविधता से संबंधित निम्न पहलुओं पर कार्य किया जाता है:
- वर्षा जल संग्रहण और संरक्षण
- मृदा संरक्षण एवं रेतीले टिब्बों का स्थिरीकरण
- सिंचाई जल प्रबंधन एवं अवशिष्ट जल का वानिकी में उपयोग
- अवक्रमित भूमि का जैव उपचार (Bioremediation)
- मृदा जल-पादप संबंध एवं पादपों द्वारा जलाक्रांत क्षेत्र का निस्तारण
- जलवायु परिवर्तन एवं कार्बन स्थूलीकरण (Sequestration)
- जैव विविधता एवं उत्पादकता
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नवीन जानकारी
रोजगार एवं निविदाएं
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